समाज के दोहरे मापदंड: अमीर और गरीब की आस्था


एलिट (अमीर) लोग मन्दिर नहीं जाते, 

वे जाते हैं पब और बार। 


क्योंकि एलिट लोगों को दुःख पीड़ा नहीं होती, 

वे हर दर्द दुःख पैसों से आसान कर लेते हैं। 


ट्रेन में उन्हें स्लीपर बोगी के धक्के नहीं खाने होते, 

वे करते हैं एसी बोगी में आसान सफ़र। 


अस्पताल में उन्हें लाइन नहीं लगानी होती, 

वे करवाते हैं एडवांस हेल्थ चेकअप। 


अगर वे मन्दिर जाते भी हैं तो, 

उन्हें मिलता है VIP दर्शन। 


गरीब जाते हैं मन्दिर, 

कुंभ नहाने। 


उन्हें लगता है उनके कष्ट भगवान दूर करेगा, 

उनके जीवन में सुख समृद्धि आयेगी। 


गरीब उठाता हैं कांवण, 

चलता है मीलों पैदल। 


उसे लगता है उसकी गरीबी, 

भगवान की दी हुई सजा है। 


उसके कष्ट, उ

सके कर्मों के पाप हैं। 


यह कविता समाज के दोहरे मापदंडों को उजागर करती है, जहाँ अमीर अपने पैसे से सब कुछ पा सकते हैं, जबकि गरीब अपनी आस्था और मेहनत से जीवन की कठिनाइयों से उबरने की उम्मीद लगाते हैं।

©Sachin Samar



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