समाज के दोहरे मापदंड: अमीर और गरीब की आस्था


एलिट (अमीर) लोग मन्दिर नहीं जाते, 

वे जाते हैं पब और बार। 


क्योंकि एलिट लोगों को दुःख पीड़ा नहीं होती, 

वे हर दर्द दुःख पैसों से आसान कर लेते हैं। 


ट्रेन में उन्हें स्लीपर बोगी के धक्के नहीं खाने होते, 

वे करते हैं एसी बोगी में आसान सफ़र। 


अस्पताल में उन्हें लाइन नहीं लगानी होती, 

वे करवाते हैं एडवांस हेल्थ चेकअप। 


अगर वे मन्दिर जाते भी हैं तो, 

उन्हें मिलता है VIP दर्शन। 


गरीब जाते हैं मन्दिर, 

कुंभ नहाने। 


उन्हें लगता है उनके कष्ट भगवान दूर करेगा, 

उनके जीवन में सुख समृद्धि आयेगी। 


गरीब उठाता हैं कांवण, 

चलता है मीलों पैदल। 


उसे लगता है उसकी गरीबी, 

भगवान की दी हुई सजा है। 


उसके कष्ट, उ

सके कर्मों के पाप हैं। 


यह कविता समाज के दोहरे मापदंडों को उजागर करती है, जहाँ अमीर अपने पैसे से सब कुछ पा सकते हैं, जबकि गरीब अपनी आस्था और मेहनत से जीवन की कठिनाइयों से उबरने की उम्मीद लगाते हैं।

©Sachin Samar



NDTV और अर्चना कॉम्प्लेक्स के साथ बीते दिनों की यादें


आशियाना, दीवारें, और रिश्ते – ये सिर्फ ईंट-पत्थर या बंधनों से नहीं बनते, बल्कि उन अनुभवों और भावनाओं से बनते हैं, जिन्हें हम वहां जीते हैं। अर्चना कॉम्प्लेक्स, ग्रेटर कैलाश, सिर्फ एक इमारत नहीं थी; यह उन यादों की संग्रहालय थी, जिन्होंने हमारी ज़िन्दगी को संवारने में अहम भूमिका निभाई। 


NDTV में बिताए वे वक्त मेरे जीवन के अनमोल हिस्सा रहे हैं। जब मैंने पहली बार अर्चना कॉम्प्लेक्स में कदम रखा था, तो मेरे दिल में एक अजीब सा उत्साह और रोमांच था। वो टेढ़ी सीढ़ियां जो अपने आप में एक पहचान हैं, जैसे ndtv का माइक, वो दीवारें, वो दफ्तर, कैंटिन, वहां की रात और वहां के लोग – सब कुछ मेरे दिल के बहुत करीब था। उन सीढ़ियों पर चलते हुए, मैंने अपने सपनों को साकार होते देखा था। 


NDTV के दफ्तर ने मुझे न केवल एक पेशेवर, बल्कि एक बेहतर इंसान भी बनाया। वहां बिताए गए हर पल ने मुझे बेहतर बनाया, मुझे प्रेरित किया, और मेरे जीवन के हर पहलू को समृद्ध किया। मैं अभी NDTV में नहीं हूं लेकिन जब NDTV का ऑफिस नई जगह शिफ्ट हो रहा है, तो दिल में एक अजीब सा खालीपन महसूस हो रहा है। अर्चना कॉम्प्लेक्स की हर दीवार, हर कोना, मेरे लिए खास था। वहां के हर दिन ने मुझे कुछ नया सिखाया और मैं आज जिस मुकाम पर हूं, वहां तक पहुंचाया। 


NDTV ने अच्छे दोस्तों से मिलवाया पारिवारिक माहौल दिया। संतोष सर, देशबंधु सर, अवतंस सर, समर भईया, आरिफ सर, लक्ष्मी सर, सचिन भईया, शिव ओम् सर, प्रभान्शू सर, पुलकित सर, संदीप सर और शानदार दोस्त निशांत, मोहित, प्रेरणा, नमिता, प्रिय राज, इकबाल, शशि रंजन जैसे अद्भुत लोगों का मिलना भी बड़ी उपलब्धि रही। 


आज जब मैं वस्त्र मंत्रालय में काम कर रहा हूं, तो NDTV के साथ बिताए वो दिन अक्सर याद आते हैं। अर्चना कॉम्प्लेक्स की यादें हमेशा मेरे दिल के करीब रहेंगी। अर्चना कॉम्प्लेक्स, तुम मेरे लिए सिर्फ एक इमारत नहीं हो, तुम मेरे संघर्षों, मेरी सफलताओं, और मेरे सपनों की साथी हो। तुम्हारे साथ बिताए गए वे दिन मेरी यादों का अनमोल हिस्सा हैं। 


अब, NDTV के नए अध्याय की शुरुआत हो रही है। नई जगह, नए लोग, और नई यादें इंतजार में हैं। लेकिन अर्चना कॉम्प्लेक्स का वो पुराना आशियाना और उसके साथ जुड़ी यादें, हमेशा हमारे दिल में जिंदा रहेंगी। अलविदा, अर्चना कॉम्प्लेक्स। तुम हमेशा मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहोगी। इन भावुक पलों को संजोते हुए, आगे बढ़ने का समय है।


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Lapata Ladies Film Review: सामाजिक कुरीतियों पर चोट करती आमिर और किरण राव की यह फिल्म


आमिर खान की पूर्व पत्नी किरण राव फिल्म निर्देशक के रूप में भी काफी चर्चित रही हैं। हाल ही में किरण की पॉपुलर फिल्म लापता लेडीज सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। 4 करोड़ की लागत से बनी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 20 करोड़ से अधिक की कमाई की। 

लापता लेडीज फिल्म में सामाजिक मसले की कहानी को पर्दे पर दिखाने का प्रयास किया गया है। सोशल मीडिया पर इस फिल्म ने लोगों की जमकर वाहवाही लूटी है। फिल्म लापता लेडीज में रवि किशन, स्पर्श श्रीवास्तव, नितांशी गोइल और प्रतिभा रत्ना ने अहम भूमिकाओं को अदा किया है। इन सभी ने अपने-अपने रोल में शानदार अभिनय की छाप छोड़ी है। 

लापता लेडीज’ के निर्माण के लिए आमिर खान की सराहना करते हुए किरण राव ने कहा, ‘इस तरह की फिल्म केवल आमिर खान जैसे निर्माता ही बना सकते थे, और यह सच भी है। आमिर खान की सामाजिक संवेदनाओं को मैंने उसी समय महसूस कर लिए था जब आज से दस वर्ष पूर्व स्टार प्लस और दूरदर्शन पर 'सत्यमेव जयते' टेलीकॉस्ट होता था। इस कार्यक्रम ने भारत में प्रचलित सामाजिक कुरुतियों एवं समस्याओं जैसे महिलाओं के साथ दुराचार, बाल यौन शोषण, दहेज, ऑनर किलिंग, शराब, विकलांग, घरेलू हिंसा आदि मे प्रकाश डाला था। हालांकि 2014 के बाद बीजेपी की सरकार बनने के बाद इस सीरीज का अगला सीजन नहीं आ सका। 

'लापता लेडीज की कहानी'

कहानी दो दुल्‍हनों के अनजाने में अदला-बदली की है, लेकिन उनके बहाने ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी को करीब से टटोल जाती है। साधारण सी कहानी में कई पल हैं, जो हंसाने के साथ झकझोरते, आपको इमोशनल भी करते हैं।

कहानी लगभग 20 साल से अधिक पुरानी है जो घूंघट में ढकी दो नवविवाहिताओं की है। दोनों यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन में अगल-बगल बैठकर आ रही होती हैं। अपना स्‍ट्रेशन आने पर दीपक (स्‍पर्श श्रीवास्‍तव) सो रही अपनी पत्‍नी फूल कुमारी (नितांशी गोयल) को जगाकर स्‍टेशन पर उतारता है।

दुल्‍हन उसके साथ उतर जाती है। घर पहुंचने पर पारम्परिक रस्मों के दौरान पता चलता है कि दुल्‍हन की अदला-बदली हो गई है। बदली दुल्‍हन देखकर दीपक और उसके स्‍वजन हड़बड़ा जाते हैं। यह दुल्‍हन अपना नाम पुष्‍पा (प्रतिभा रांटा) बताती है।

उसे अपने ससुराल का पता ठीक से पता नहीं होता। परिवार अपनी असली बहू फूल की तलाश में जुटता है। फूल उधर दूसरे परिवार को देखकर सकते में आ जाती है। उसे अपने ससुराल के गांव का नाम तक पता नहीं होता। बस इतना याद होता है कि किसी फूल के नाम पर है। अब पूरी फिल्म यहीं बता दूंगा तो आप देखेंगे क्या, Netflix पर मौजूद है देख आइये। 

साधारण सी कहानी में महिलाओं की आत्‍मनिर्भरता, शिक्षा, जैविक खेती जैसे मुद्दों के साथ उनकी दिशा और मनोदशा को कहानी में खूबसूरती साथ चित्रित किया गया है। 

फिल्‍म के निर्माता आमिर खान हैं। कहानी बिप्‍लब गोस्‍वामी ने लिखी है। स्‍क्रीनप्‍ले और संवाद स्‍नेहा देसाई का है। आमिर ने ही यह कहानी अपनी पूर्व पत्‍नी किरण को बनाने के लिए दी थी। उस उम्‍मीदों पर वह खरी उतरी हैं। फिल्‍म धोबी घाट के निर्देशन के करीब 13 साल बाद किरण राव ने निर्देशन में वापसी की है।

राष्ट्रीय युवा संसद | Sachin Samar | Drishti CUET | Drishti IAS

 


आजादी के बाद भारत ने शासन की संसदीय व्यवस्था को अपनाया। निश्चित रूप से यह संसदीय व्यवस्था ब्रिटेन से प्रभावित है लेकिन सदैव यह प्रयास किया जाता रहा कि भारतीय संविधान, संस्थाएं और इनकी कार्यप्रणाली भारतीय समाज के मूल्यों के अनुरूप हों। इसके लिए न सिर्फ सैद्धांतिक प्रयास किए गए बल्कि व्यावहारिक स्तर पर योजनाएं भी बनाई गईं और सतत रूप से संचालित की जा रही हैं। यदि हम भारतीय इतिहास और समाज का अवलोकन करें तो लोकतांत्रिक और संसदीय मूल्य भारतीय समाज में सदैव विद्यमान रहे हैं। आज आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों और भारतीय समाज में विद्यमान संसदीय मूल्यों का समावेश करके विभिन्न प्रकार के विचारों को कार्य रूप में लागू किया जा रहा है। राष्ट्रीय युवा संसद भी एक ऐसा ही विचार है........ 

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