अमीर ख़ुसरो: ‛तूती-ए-हिन्द’ | Sachin Samar | Drishti CUET | Drishti IAS

 अमीर ख़ुसरो: ‛तूती-ए-हिन्द’

अमीर खुसरो भारत की उन महान विभूतियों में से हैं, जो इस देश के इतिहास में भाषा, साहित्य, संगीत और देश की सांस्कृतिक एकता के क्षेत्र में अपने महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए सदैव जीवित रहेंगे। अमीर खुसरो ने धार्मिक संकीर्णता और राजनीतिक छल-कपट के उथल-पुथल से भरे माहौल में रहकर हिन्दू-मुस्लिम एवं राष्ट्रीय एकता, प्रेम, सौहार्द, मानवतावाद और सांस्कृतिक समन्वय के लिए पूरी ईमानदारी और निष्ठा से कार्य किया। वे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के कवि थे, जिनके काव्य की लोकप्रियता भारत में ही नहीं, भारत के बाहर मध्य एशिया के अनेक देशों तक फैली है। ईरान के प्रसिद्ध फारसी कवि हाफिज़ शीराज़ी ने तो उन्हें 'तूती-ए-हिन्द' के नाम से सम्बोधित किया था। आज भी, भारत, पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान और तजाकिस्तान आदि विश्व के कई देशों में उनके साहित्य का पठन-पाठन होता है। 

अमीर खुसरो भारतीय परम्परा और परिवेश से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने इस्लामी परम्पराओं को भारतीय विरासत के अन्दर समाहित करने का प्रयास किया। उन्होंने दो विभिन्न संस्कृतियों , दो विभिन्न धार्मिक विश्वासों और परम्पराओं में परस्पर सौहार्द, प्रेम और सामंजस्य का वातावरण तैयार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। संगीत के क्षेत्र में अमीर खुसरो ने अपने समन्वयकारी प्रवृत्ति के अनुकूल अनेक चमत्कार किए। उन्होंने भारतीय संगीत में कई राग-रागनियों का आविष्कार किया, कई वाद्य यन्त्रों को ईजाद करने का श्रेय भी उन्हें प्राप्त है।

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