![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_cf-zFlUxuRvnsbUgbYNRBCFqILs4x83n1eotJlw2_xnswkGWd_u1zHFkMyCQDtMtTKsGN9p6LY2J-jGH9FuAJDsjfHeN_WX4eDFXanKxGvexqaGmagiarJUxkpD41D-5wNVConRRBFbpZu9ju3kAAHLofC452io65kmndLBBayDE7XyaFQo5JWZN4jQ/w278-h320/IMG_20230702_100736.jpg)
आजादी के बाद भारत ने शासन की संसदीय व्यवस्था को अपनाया। निश्चित रूप से यह संसदीय व्यवस्था ब्रिटेन से प्रभावित है लेकिन सदैव यह प्रयास किया जाता रहा कि भारतीय संविधान, संस्थाएं और इनकी कार्यप्रणाली भारतीय समाज के मूल्यों के अनुरूप हों। इसके लिए न सिर्फ सैद्धांतिक प्रयास किए गए बल्कि व्यावहारिक स्तर पर योजनाएं भी बनाई गईं और सतत रूप से संचालित की जा रही हैं। यदि हम भारतीय इतिहास और समाज का अवलोकन करें तो लोकतांत्रिक और संसदीय मूल्य भारतीय समाज में सदैव विद्यमान रहे हैं। आज आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों और भारतीय समाज में विद्यमान संसदीय मूल्यों का समावेश करके विभिन्न प्रकार के विचारों को कार्य रूप में लागू किया जा रहा है। राष्ट्रीय युवा संसद भी एक ऐसा ही विचार है........
0 comments: