आत्मविश्वास और आत्मसंतुष्टि: काम का सबसे बड़ा सहारा


जीवन में हर व्यक्ति अपने काम से कुछ न कुछ हासिल करना चाहता है कभी पहचान, कभी सफलता। लेकिन सच्चाई यह है कि सबसे बड़ी उपलब्धि तब होती है जब किसी कार्य के बाद भीतर से आत्मसंतोष और शांति महसूस हो। यही संतोष हमें आगे बढ़ने का असली साहस देता है।

मैं जानता हूँ कि जहाँ अभी मैं कार्य कर रहा हूँ वहाँ मेरा योगदान सीमित समय तक ही रहेगा। सरकारी तंत्र की प्रकृति यही है लोग आते हैं, अपना समय और कौशल लगाते हैं और फिर आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन इस सीमित समय में जब कोई छोटा-सा भी अचीवमेंट मिलता है और अपने प्रयास का असर सामने दिखता है, तब जो संतोष मिलता है वह अमूल्य होता है।

कभी-कभी स्थिति ऐसी भी आती है कि अच्छे काम के बावजूद सराहना नहीं मिलती, बल्कि आलोचना या डांट सुनने को मिल जाती है। यह पल हताश करने वाले होते हैं मन में सवाल उठता है कि इतनी मेहनत करने के बावजूद मेरी नीयत या प्रयास क्यों नहीं समझे गए। ऐसे समय पर हमें अपने काम और नीयत पर भरोसा बनाए रखना चाहिए। मनोविज्ञान कहता है कि जो इंसान अपनी दिशा पर अडिग रहता है, वही लंबी दौड़ में सच्ची उपलब्धि हासिल करता है।

जब हम कोई ऐसा काम करते हैं जिसे बाद में गर्व से याद कर सकें “हाँ, यह काम मैंने किया था” तो यही आत्मगौरव हमें निरंतर मेहनत करने का हौसला देता है।

काम का असली उद्देश्य यह नहीं कि हमें कितनी बार प्रशंसा मिली, बल्कि यह है कि हमने कितनी ईमानदारी से अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। यही आत्मसंतुष्टि स्थायी होती है और कठिनाइयों के बीच भी हमें आगे बढ़ाती रहती है।

आख़िरकार, बाहरी परिस्थितियाँ चाहे जैसी हों प्रशंसा हो, आलोचना हो या चुप्पी अगर भीतर आत्मसंतोष है, तो वही हमारी सबसे बड़ी ताक़त और प्रेरणा बन जाती है।

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