आज जब हम नई उम्र के लोग बॉलीवुड, हॉलीवुड रैप सॉन्ग के जमाने में पैदा हुए हैं तो हम अपने लोकाचार से, अपने भारतीयता से दूर होते जा रहे हैं। हालांकि मैं बनारस के नजदीक जौनपुर जिले से हूँ और ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता हूँ तो हमारे यहाँ अभी काफी हद तक भारतीय संस्कृति जीवित है। हमारे यहां अभी भी तमाम रीति रिवाजों का पालन किया जाता हैं। शादी विवाह में पुराने गीत पुराने राग में ही गाए जाते हैं। हालांकि विवाह में पश्चिमीकरण तेजी से हावी हो रहा है, लेकिन पुरानी महिलाएं मटमंगरा (हल्दी) भत्तवान (मेहंदी) में पारंपरिक गीतों को जिंदा रखी है। माटी खोदने, घूर* (इसको हिंदी या अंग्रेजी में लिखने पर इसके भाव मर जायेंगे अत: इसे घूर ही पढ़ा जाय) पर जाते हुए पारम्परिक गीत गाए जाते हैं जिसमें घर की महिलाएं जैसे बुआ, मौसी, मामी आदि लोग सारी रस्में निभाती हैं। इसके अतिरिक्त विवाह पश्चात चौथ (चउथ) में चौथहरूं को गारी गाने की परम्परा भी काफी कम हुई है। हालांकि चौथ के समय खाने पर गारी गाने को शुभ माना जाता रहा है साथ ही तिलक चढ़ाने जाने पर भी ऐसा होता है। मैं भी गालियों वाली गीत के चपेट में आ चुका हूँ, लेकिन मुझे लगता है मेरे विवाह तक यह परम्परा मुश्किल से जीवित रह पायेगी। :))।
मेरे लेख का मुख्य विषय है अपने क्षेत्र का कोई लोकगीत। मेरा बिरहा लोकगीत को लेकर अलग ही लगाव रहा है। वैसे इससे मेरा परिचय बेहद असामान्य तरीके से हुआ, क्योंकि 21वीं सदी का लड़का बिरहा को लेकर शौक तो पालेगा नहीं कि उसे सुनने के लिए किसी आयोजन में जाए, और ऐसे आयोजन होते भी बमुश्किल से हैं। मैंने बिरहा को अपने घर के सामने से गुजर रहे ट्रकों में सुना, मेरा घर सड़क के किनारे है जहाँ से अक्सर ट्रकों में वे तेज आवाज में गीत बजाते हुए जाते हैं। वर्ष 2019 में Big Ganga Tv Channel पर प्रसारित हुये बिरहा मुकाबला को हमारे क्षेत्र में लोग बड़े चाव से देखते थे। सोमवार से शुक्रवार शाम आठ बजे बिरहा मुकाबला का लोग बेसब्री से इंतजार करते और अगली सुबह उस पर चर्चा भी करते थे। मुझे रजनीगंधा का और उजाला यादव की प्रस्तुति जमती थी मैं विशेषकर रजनीगंधा की बारी का इंतजार करता था क्योंकि वे गाते वक्त झूमती भी थी। उस वक्त मुझे रितिक रोशन से ज्यादा अच्छा लोकगीत गायिका रजनीगंधा का नृत्य लगा।
https://youtu.be/_1dwhuRKIb4 05 मिनट
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बिरहा का इतिहास
पूर्वी उत्तर प्रदेश का लोक गायन ‘बिरहा’ का आज लोक गायकी के क्षेत्र में अपना एक विशिष्ट स्थान है। उत्तरोत्तर विकास की ओर अग्रसर गायकी की यह लोकविधा आज अपने मूल क्षेत्र की सीमाओं से बाहर निकल कर भारत के विभिन्न प्रान्तों में लोकप्रियता हासिल कर दुनिया के अन्य मंचों पर भी अपना जलवा बिखेर रही है। लोक गायकी की इस विधा की शुरूआत आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व भारतीय कला संस्कृति और धर्म-दर्शन की नगरी काशी में एक अनपढ़ कवि हृदय श्रमिक के द्वारा हुई थी। आज की चर्चित लोक गायकी की इस विधा के आदि गुरु ‘बिहारी यादव’ थे।
बिरहा की गायकी पूर्वी उत्तर प्रदेश पश्चिमी बिहार की सरहद सहित पूरे देश में जहाँ भी इस क्षेत्र के लोग मजदूरी, नौकरी और काम-काज के लिए समूहों में रह रहे हैं, वहाँ खूब फली-फूली और परवान चढ़ी। आज बिरहा पंजाबी, भांगड़ा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ‘रागिनी रसिया’ बुन्देलखण्ड के ‘आधार चैतन्य’, ‘बिरहासहरसा’, काशी अंचल के अहीरों में गाये जाने वाले ‘भगैत गीत’ जैसे लोकछन्दों वाली गायकी की तरह अहीरों, जाटों, गुजरों, खेतीहर मजदूरों, शहर में दूध बेचने वाले दुधियों, लकड़हारों, चरवाहों, इक्का, ठेला वालों का लोकप्रिय हृदय गीत है। पूर्वांचल की यह लोकगायकी मनोरंजन के अलावा थकावट मिटाने के साथ ही एकरसता की ऊब मिटाने का उत्तम साधन है। उत्तरोत्तर विकास की ओर अग्रसर बिरहा दिनों-दिन सुसंस्कृत होकर शास्त्रीय रूप पाती जा रही है। बिरहा गाने वालों में पुरुषों के साथ ही महिलाओं की दिनों-दिन बढ़ती संख्या इसकी लोकप्रियता और प्रसार का स्पष्ट प्रमाण है।
बिरहा गायन के आज दो प्रकार सुनने को मिलते हैं। पहले प्रकार को "खड़ी बिरहा" कहा जाता है और दूसरा रूप है "मंचीय बिरहा"। खड़ी बिरहा में वाद्यों की संगति नहीं होती, परन्तु गायक की लय एकदम पक्की होती है । पहले मुख्य गायक तार सप्तक के स्वरों में गीत का मुखड़ा आरम्भ करता है और फिर गायक दल उसमें सम्मिलित हो जाता है। बिरहा के दंगली स्वरुप में गायकों की दो टोलियाँ होती हैं जो बारी-बारी से बिरहा गीतों का गायन करते हैं। ऐसी प्रस्तुतियों में गायक दल परस्पर सवाल-जवाब और एक दूसरे पर कटाक्ष भी करते हैं। इस प्रकार के गायन में आशुसर्जक लोक-गीतकार को प्रमुख स्थान मिलता है।
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कुछ प्रसिद्ध बिरहा गायक
आदिगुरु बिहारी यादव (बिरहा के जनक माने जाते है , गाज़ीपुर 1837), पंडित परशुराम यादव बिरहा भीष्म पितामह, पत्तू यादव, ओमप्रकाश यादव (बिरहा बादशाह) रामकिशुन यादव (कुड़वां, गाजीपुर), विजयलाल यादव (बिरहा सम्राट) , दिनेश लाल यादव (निरहुआ) वर्तमान सांसद जिला आजमगढ़ उ.प्र., उजाला यादव।
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संदर्भ सूची -
http://podcast.hindyugm.com/2011/07/blog-post.html?m=1
http://sachinsamar.navchetana.in/
पुराना बिरहा गीत --
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