मैंने कहीं पढ़ा था आज की आधुनिक दिल्ली बनने से पहले दिल्ली सात बार उजड़ी और बसी है। यहाँ आने से पहले मेरे मन में इस नए शहर को लेकर हजारों ऐसे सवाल थे जिसका जवाब मुझे खुद ही ढूढ़ना था।
दिल्ली पूरी दिल्ली जैसी ही थी जहाँ अपना कोई नहीं, शुक्र ये है कि पढ़ाई करने यहाँ आए हैं अगर नौकरी करने आते तो कुछ ही दिन में अपने गाँव वापस जाना तय था। शुरुआती दिनों में मन यहाँ नहीं लग रहा था। किसी ने सही ही कहा है कहीं दूर जाने पर आपका घर आपका गांव आपको खींचता है।
दिल्ली आए दो महीने हो गए हैं । अभी यहाँ ठीक लग रहा है। कहते हैं दिल्ली ने जिसको अपना लिया उसका दिल्ली छोड़कर जाना आसान नहीं होता।
हर आदमी के अंदर एक गाँव होता है, जो शहर नहीं होना चाहता । बाहर का भागता हुआ शहर, अंदर के गाँव को बेढंगी से छूता रहता है, जैसे उसने कभी गाँव देखा ही नहीं।
मेरे साथ क्या होगा मुझे नहीं पता, बड़ा सपना लेकर दिल्ली आये हैं उस सपने का क्या होगा मुझे नहीं पता। नहीं पता तो नहीं पता।
दिल्ली में पहली बड़ी समस्या थी रहने और खाने की, बड़े भईया ने हिदायत दी थी दिल्ली में रहने वाले हर आदमी की अपनी दुनिया होती है। अपना ठिकाना खुद बनाना होता है।
अपने comfort जोन से बाहर निकलना मेरे लिए बिल्कुल भी आसान नहीं था लेकिन निकलना जरूरी था क्योंकि किसी से वादा जो किया था।
अगले वीडियो में बेर सराय गाँव को दिखाएंगे बेहद सुंदर है यह गाँव, jnu iimc और अन्य जगहों पर पढ़ाई और काम करने वाले लोग और छात्र यहाँ रहते हैं।
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