युवाओं से उम्मीद करें लेकिन उन्हें समझें भी



नई पीढ़ी से अपेक्षाएँ तो हमेशा से की जाती रही हैं और हमेशा की जाती रहेंगी। इन दिनों भी उनसे हर असफलता को सफलता में बदलने की, हर अव्यवस्था को व्यवस्था में बदलने की अपेक्षाएँ की जा रही हैं, लेकिन इस परिवर्तन के लिए उन्हें कुछ दिया जाना चाहिए। इस बारे में घोर उपेक्षा बरती जाती है। यह बात अटपटी भले ही लगे, पर स्वस्थ समीक्षा के क्रम में इसे नकारा या झुठलाया नहीं जा सकता। उनकी शिक्षा के लिए शिक्षण संस्थानों की संख्या बढ़ाई जा रही है, लेकिन वे संस्थान अपने मूल प्रयोजन की पूर्ति कितने अंशों में कर पा रहे हैं, इस ओर कोई ध्यान नहीं देना चाहता। 

उनसे अच्छा जीवन जीने की उम्मीद तो की जाती है, लेकिन जीवन की बारीकियाँ, वास्तविकताएँ उन्हें समझाने के लिए न शिक्षक तैयार होते हैं और न अभिभावक। उनसे संयमशीलता की आशा करने वाले उनके लिए उसके अनुरूप उदाहरण एवं वातावरण प्रस्तुत करने से हमेशा कतराते रहते हैं। उनकी शक्ति का मनचाहा उपयोग कर लेने में सभी को उत्साह है, लेकिन उनका 'मन' ठीक करने में किसी को रस नहीं। आदेश के अनुगमन के लिए उन्हें उपदेश तो बहुत दिए जाते हैं, लेकिन यदि वे उस रास्ते पर चलना चाहें तो उनका साथ देने के लिए कोई तैयार नहीं होता।

ऐसे ढेरों उदाहरण सामने दिखाई देते हैं, जिनमें यह कटु सत्य स्वीकार करना है कि नई पीढ़ी से जितनी अधिक अपेक्षाएँ की जाती हैं, व्यावहारिक स्तर पर उनके प्रति उतनी ही उपेक्षा भी बरती जाती है। उनके हित की कामना करने वाले तो बहुत हैं, लेकिन उनके हित के लिए उपयुक्त लोग तैयार नहीं होते। यह अभाव मिटाना होगा, तभी नई पीढ़ी से प्रगति के स्वप्न साकार हो सकेंगे। युवाओं को लेकर के बेहद जरूरी संवाद परीक्षा पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभिभावकों और शिक्षकों को अपने बच्चों, विद्यार्थियों को समझने और उनके प्रति नर्म व्यवहार करने की सलाह दी। जो की परीक्षा पूर्व बेहद जरूरी है युवा छात्र उस दौरान तनाव में होते हैं। वे अपने हम उम्र साथियों से सार्थक संवाद भी नहीं कर सकते, उन्हें किसी बड़े के मार्गदर्शन या सलाह की जरूरत होती है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परीक्षा पर चर्चा संवाद के दौरान बेहद जरूरी बात कहते हैं कि हर मां-बाप अपने बच्चों का सही मूल्यांकन करें और बच्चों के भीतर हीन भावना को ना आने दें। आप हर पल टोका-टोकी के जरिए आप अपने बच्चों को 'मोल्ड' नहीं कर सकते। ऐसा करना उनके तनाव का अलग कारण बन सकता है। वे शिक्षकों से कहते हैं कि हमारे शिक्षक विद्यार्थियों के साथ जितना अपनापन बढ़ाएंगे उतना बेहतर होगा। जब विद्यार्थी आपसे कोई सवाल करता है तो वह आपके ज्ञान को परखता नहीं है, बल्कि वह नई-नई चीजों को जानना चाहता है। विद्यार्थी जीवन में सवाल को लेकर जिज्ञासा ही उसकी बहुत बड़ी अमानत होती है। 

प्रधानमंत्री युवाओं को प्रेरित करते हुए कहते हैं कि हम दिन-रात कॉम्पिटिशन के भाव में जीते हैं। हमें अपने लिए जीना होगा, अपने में जियें। अपनों से सीखते हुए जियें। सीखना सबसे चाहिए लेकिन अपने भीतर के सामर्थ्य पर भी बल देना चाहिए। एक एग्जाम के कारण जीवन एक स्टेशन पर नहीं रुकता है। यहाँ ज्यादातर लोग सामान्य होते हैं, असाधारण लोग बेहद कम होते हैं। सामान्य लोग असामान्य काम करते हैं और जब सामान्य लोग असामान्य काम करते हैं तब वे ऊँचाई पर जाते हैं। वर्तमान समय में युवाओं को समझने वाले बेहद कम लोग हैं सभी उनसे बेहतर परिणाम की अपेक्षा करते हैं। 2018 में जब प्रधानमंत्री ने परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम की शुरुआत की तबसे यह युवाओं के लिए संजीवन बूटी जैसी रही है। उन्हें लगता है कि देश का प्रधानमंत्री उन्हें समझने वाला है इससे उनका उत्साह बढ़ता है। 

प्रधानमंत्री तमाम सवालों का बेहद रोचक तरीके से जवाब देते हैं, जैसे सुबह पढ़ाई करें या शाम को? खेलने से पहले पढ़े या बाद में? खाली पेट पढ़ें या खा-पीकर? इन सवालों के जवाब में पीएम मोदी ने छात्रों को बताया कि मुझे एक फिल्‍म याद आती है जिसमें रेलवे स्‍टेशन के पास रहने वाले एक व्‍यक्ति को बंगले में रहने का अवसर मिलता है। वहां उसे नींद नहीं आती तो वह रेलवे स्‍टेशन जाकर रेलगाड़‍ियों की आवाज़ रिकार्ड करता है और वापस आकर टेप रिकॉर्डर में सुनकर फिर सोता है। आशय ये है कि हमें कंफर्टेबल होना जरूरी है। इसके लिए सेल्‍फ असेसमेंट करें और देखें कि आप कब और कैसे पढ़ाई के लिए कंफर्टेबल होते हैं। 

- सचिन समर

दैनिक जागरण inext पटना में 4 फरवरी 2023 को माय व्यू कॉलम में प्रकाशित


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